साफ-सफाई का उगा, कैसा नवल प्रभात।
भ्रष्टों, चोरों के लिए, कर दी दिन में रात।।
खुली देश की आँख जब, खुली अचानक पोल।
बने वही कुख्यात जो, रहे कभी विख्यात।।
यही बचा अधिकार बस, करते रहो विरोध।
नहीं गलेगी दाल अब, नहीं बनेगी बात।।
सूखा पीड़ित दिख रहा, आँगन उनका आज।
जिनके घर होती रही, वोटों की बरसात।।
डी०डी०टी० का कर दिया, अच्छे से छिड़काव।
मच्छर लेकिन कर रहे, अभी बहुत उत्पात।।
—डाॅ०अनिल गहलौत