
रोम रोम पुलकित हुआ है, प्रणय मधुर फिर छाया है। घिर घिर आई घटाएं काली,
फिर से सावन आया है।
है मधुमास अति मनोहर,
नव उल्लास घिर आया है।
चमक रहीं बिजली यूं चमचम,
तारों ने सरगम गाया है।
भ्रमर का गुंजन मोहित करता,
कलियों का मन मुस्काया है।
ताल पे थिड़के मोर_पपीहे,
वसुधा का मन हर्षाया है।
प्रिय मिलन को आतुर नैना,
स्वागत में हृदय बिछाया है।
धरती _अंबर खामोश हुएं हैं,
धड़कन ने राग सुनाया है।
शीतल, मन्द,सुगंध,मलय बहे,
बेला ने शमां महकाया है।
उत्सव मिलकर गाते हैं सारे,
’रजनी’ परदेशी घर आया है।
रजनी प्रभा