हे जगत जननी ,मात दुर्गे-“प्रणीता प्रभात”

हे जगत जननी , मात दुर्गे ,
निशदिन तुम्हें निहारूँ मां ,
थके ना जिव्हा , झुके ना पलकें ,
भाव विभोर हो गुहारूं माँ………….
नारी रूप नारायणी तू ही , शक्ति का अवतार है तू,
सिंहवाहिनी,भयहारिणी,चंड – मुंड संहारिनी भी तुम,
जब-जब पाप बढ़े पृथ्वी पर ,रूप धरे तू कालिका का,
दूर करें बुराईयों को , सर काट दे पापियों का,
हे भगवती , नरकासुर नाशिनी ,
शुंभ – निशुंभ विनाशिनी भी तू ,
शिव – शंभू की वामांगी , आदि शक्ति ,
सत्यानंद स्वरूपणी भी तू ,
अष्टभुजी मां , महागौरी , सिद्धिदात्री ,
महिषासुर मर्दिनी भी तू ,
फिर अवतार ले पाप भरी पृथ्वी पर ,
पापियों का विनाश कर दें ,
हे माँ या तू अपनी बेटियों में ,
शक्ति , साहस , विश्वास भर दे ,
लड़ सके दुराचारियों , बलात्कारियों से,
अपनी अस्मिता की रक्षा कर सके ,
भरे हुंकार तेरे ही जैसे ,
आतातायियों का नाश कर दे ,
बन सके धरा फिर स्वर्ग से सुंदर ,
भय ना रहे किसी के मन में ,
हे जग जननी , मां कल्याणी ,
जगत का कल्याण कर दे………

स्वरचित
प्रणीता प्रभात
फरीदाबाद , हरियाणा

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