✨लड़की एक संघर्ष ✨-“रूद्र प्रताप सिंह”

रोज सुबह जल्दी पढ़ने जाने की चाह मे तेजी से बढ़ने वाले कदमो मे न जाने आज कैसी ठिठक आ गई थी , शायद मेरे कदमो की चाल , मेरे सोचने की बोझ की वजह धीमी पड़ गई थी।
कल से उसकी पुरी दुनिया बदलने वाली थी ,कितना नया होगा सबकुछ उसके लिए घर , परिवार, रिश्ते ,तौर-तरीके, हर चीज नई होने वाली है।
आज सुबह-सुबह जब मै उठी और ट्यूशन जाने के लिए तैयार हो रही थी, तो एकाएक मुझे याद आया की ,कल मेरी एक सहपाठी की बरात आने वाली है।
दूसरो की शादी सुनकर मन मे एक अलग उमंग तो होता है, खासकर दोस्त की हो तो बात ही कुछ और है—-
पर जब मैने ट्यूशन जाने के लिए किताब उठाई तो ,एक ख्याल ने एक ही झटके मे दिल की खुशी को मायूसी मे बदल दिया,अचानक मेरे चेहरे की रगंत जैसे गायब ही हो गई उस कड़कड़ाती ठंड मे भी सिकन की बुँदो ने मेरे माथे को घेर लिया।
और भारी मन के साथ अपनी सोच मे ही खोई हुई, मै ट्यूशन के लिए निकल गई ।
मै ये सोचती रही की, दुनिया की नजरों मे कल एक घर बसेगा, पर शायद उस की कीमत उस लड़की के सपने चुकाएगे।
उसको पढ़ना था , उसे अपनी पढ़ाई पूरी करके, अपनी एक पहचान बनानी थी ,ऐसा नही था की वो मंद या कमजोर थी ,,नही बल्कि वो एक होनहार छात्रा होने के साथ-साथ एक जिम्मेदार और खुले विचारो की लड़की थी , भाई- बहनो मे भी पढ़ाई मे अव्वल थी ,उम्र मे भी अभी तक बचपन ने उसकी अगुंली नही छोड़ा था।
पर उसके पिता के जिद के आगे सबकुछ हार गया ,किसी की एक न चली ।
मेरे हाथ का वो बस्ता, ट्यूशन का वो रास्ता उन यादो को ऐसे दुहरा रहा था, जैसे आज भी हम वही हो ।
अभी चंद दिनो पहले की ही तो बात है , कि हम और वो गाँव मे एक साथ पढ़ने जाया करते थे ,रास्ते भर की वो मस्ती ,कक्षा की वो शैतानिया, गप्पे लड़ाना, वो साथ मे जोश के साथ पढ़ना, कभी थके तो कभी बुझे मन से वापस घर आना और न- जाने कितने मंजर मेरी नजरो के सामने चल रहे थे।
वो ,जो हम कभी एक साथ पढते ,खेलते, खाते -पीते, घुमते थे—–
हमे खबर भी नही थी ,कि कुछ इस तरह हम पास होकर भी दूर हो जाएगे ।
दुनिया और समाज के लिए एक बेटी विदा होकर अपने घर चली जाएगी।
पर मेरे मन के उस प्रश्न का क्या?
कहाँ हम कभी किताबो में उलझे होते थे, उसे समझते , जुझते थे।
अब उसे रिश्ते समझने होगे, कहाँ हम कभी वो जिद करते थे, लेकिन शायद अब उसे समझौते करने होगे ??
आज सचमुच कही-न-कही मुझे ” एक चुटकी सिंदूर की की कीमत ” समझ आ रही थी।।
इस ख्याल में खोई हुई, मै न जाने कब अपनी धीमी चाल से ट्यूशन के दरवाजे तक पहुंच गई,,, मैं सहमी हुई बस निबद्ध होकर ऐसे ही न जाने क्या निहारती रही??
उस दिन सर ने क्या पढाया, कक्षा मे क्या हुआ, इस सब से बेखबर अपने ही सवालो में उलझी हुई वापस घर आने लगी
” शादी” ,, इस शब्द ने मेरे दिलो – दिमाग मे एक अजीब कशमकश पैदा दी।
अपने सवालो के जबाव के जद्दोजहद में मुझे बस यही एहसास हुआ, कि शायद इसी तरह, इन्ही चंद दिनो में एक- न – एक दिन शायद मेरी और कुछ लडकियो की दुनिया यूँ ही बदलेगी।
दुनिया और समाज मे बदलाव तो जरूर होगें , पर शायद लडकियो के लिए कुछ संघर्ष जारी ही रहेगा।।🙏

             " तमन्ना " -- "रूद्र प्रताप सिंह"
                भोजपुर (आरा) , बिहार 🙏

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