
एक मेरे अज़ीज़ मित्र ने शायद दिल्ली शहर की हालत देख लिखा , आजकल धुँध बहुत है मेरे शहर में , अपने दिखते नहीं और जो दिखते हैं वो अपने नहीं , मैंने चंद और पंक्तियाँ जोड़ी हैं —————————
धुँध का तो आलम ना पूछो , घरों और दिलों में भी घुस आयी है , अब तो रातों को भी आते सपने नहीं ।
इस धुँध ने तो कुछ इस क़दर घमासान मचा रखा है कि लोग लगे हैं थकने कई !
ख़ैर , ये धुँध तो वक़्त के साथ छःट जाएगी ,
फिर आएगा सूरज की रोशनी से चमकता सवेरा ।
इस बार तो इस धुँध ने कुछ ज़्यादा दिनों के लिए डाल रखा है डेरा ।
लेकिन मुझे एक बात खटक रही है, वो ये कि मेरे अज़ीज़ ने ऐसा क्यूँ कहा कि जो दिखते हैं वो अपने नहीं , ये बात है कुछ अटपटी , है खट्टी ।
मेरे विचार में तो पुरे कायनात में फैला हुआ है प्रेम भाव , सब हैं अपने , देखने के लिए चाहिए अहसासों और ख़यालों की क़रीबी , नज़दीकी और बारीकी ।
लेकिन अफ़सोस ये कि सब मेरी तरह सोचते नहीं , और हर बाशिंदे में फिर अपनापन खोजते नहीं !
वातावरण में तो निश्चित धुँध है , इस धुँध ने अब ज़मीरों पर भी कर लिया है क़ब्ज़ा !
अब तो पता ही नहीं लगता कि कौन झूठा है और कौन सच्चा ?
सच पुछो तो इस धुँध से मुझे परेशानी नहीं ,क्यूँकि इस के छँटने का है पूरा अंदेशा।
यारो , अब अंदरूनी धुँध को भी मिटा दो , यही है आप सब को मेरा संदेशा ।
अगर हो सके तो इस धुँध को ना करने देना दिलों में प्रवेश , और अगर ये मन के अन्दर आ भी गयी तो इसे तुरन्त बाहर जाने का दे देना आदेश ।
सोचो तो सब अपने हैं , सिर्फ़ ज़रूरत है सब को प्यार भरी नज़र से देखने की , फिर देखो करिश्मा ,सारा संसार लगेगा अपना !
इस पराए शब्द का हमेशा के लिए कर दो बहिष्कार , तो फिर ज़्यादा ख़ूबसूरत दिखेगा ये संसार ।
अन्धकार के बादलों को रखो अपने से दूर ,ये कर देते हैं इंसान को चूर चूर ।
अहसासे प्यार और प्रीत से करो दोस्ती और निस दिन करो प्रभु की भक्ति ।
फिर अच्छे संस्कारों से लिप्त हो जाएगा आपका जीवन , और तृप्त हो जाएगा फिर ख़ुशियों से आपका तन और मन ।
उस दिन निस्सन्देह इस सम्पूर्ण धरती पर उजागर होगा एक नया सवेरा , और मिट जाएँगे ये हरफ , तेरा , मेरा !
लेखक——निरेन कुमार सचदेवा।
Delhi , is enveloped these days by a dense layer of fog .
Let this fog be limited to the exterior only , let it never engulf your inner self !!