मदद (लघुकथा)

मदद (लघुकथा)

रामू की मां रामू से कहती है, ‘बेटा आज जेष्ठ शुक्ल पक्ष की गंगा दशमी तिथि है।मुझे गंगा स्नान करा दो तो बड़ा उपकार होगा। मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। मैं मुक्त हो जाऊंगी।तूने मेरे लिए बहुत किया है। ले चल बेटा।’
रामू आज्ञाकारी पुत्र था।वह अपनी मां को ले गंगा स्नान को चल देता है। वहां भव्य मेले और यज्ञ का आयोजन किया गया है।मंत्री,विधायक सहित सभी बड़े पदाधिकारी वहां मंचन कर रहे हैं।पर्यावरण पर किए गए अपने -अपने कार्यों की सभी बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुति दे रहे हैं।
तभी भीड़ के पीछे बैठी एक महिला जोर-जोर से रोने लगी। उस महिला के कानों में कुंडल की जगह जाले लटके थे। टीके की जगह पत्तों ने ले रखी थी। कमरबंध को लताओं ने घेर रखा था। हाथों में पुआल ही पुआल था। पूरा बदन कीचड़ से लदा पड़ा था। सिर के लंबे घने बालों पर छिलकों का राज था।
रामू ने पूछा,’आपकी ऐसी दशा कैसे?क्या आपके बच्चे नहीं? कोई परिवार नहीं?  महिला ने रुआंसी आवाज में कहा, ‘नहीं-नहीं,ऐसी बात नहीं? बहुत से बच्चे हैं मेरे।कुछ उच्चपदाधिकारी हैं, तो कुछ सामान्य जीवन जी रहे हैं। भरा -पूरा परिवार है मेरा। पर उन्होंने ही तो मेरी ऐसी स्थिति कर रखी है।’
भीड़ में से किसी ने कहा, ‘वह आपको कुछ देते नहीं ?आपका ख्याल नहीं रखते? महिला ने कहा,’देते हैं न,’- कहने के साथ ही एक पोटली खोली जिसमें प्लास्टिक की थैलियां, दवाइयों की सीसियां,कुछ फटे-पुराने कपड़े, जूते- चप्पलों के साथ-साथ वह तमाम अवशिष्ट पदार्थ शामिल थे, जो घर-कारखानों में इस्तेमाल होते हैं। महिला ने कहा, ‘ख्याल रखते, तो यही सब देते मुझे?
रामू का मन उनका कचरों को देख भिन्नाने लगा। उसने तूनक कर कहा, ‘कितने-निर्लज्ज और नीच बच्चों का परिवार है आपका।कोई अपनी मां को भला इतना गंदा करता है क्या? घोर पाप के भागी बनेंगे वो। समाज को ऐसे लोगों को दंडित करना चाहिए।’
भीड़ में से किसी ने कहा,’हम आप को न्याय दिलाएंगे। बताइए क्या नाम है आपका ?कौन है आप? महिला ने भरे गले से कहा,’गंगामैं तुम सब की मां हूं गंगा।तुम सभी मेरे परिवार हो और मेरी इस अवस्था के लिए जिम्मेदार भी। अब तुम अपनी शपथ भूल तो ना जाओगे। याद रखो,मुझे स्वच्छ और सुंदर बनाओगे  तो ही मेरे साथ न्याय हो पाएगा।’
तभी रामू की तंद्रा टूटी।कोई उसे झकझोर रहा था। उसने देखा एक महिला हाथ फैलाए खड़ी कह रही थी, ‘बेटा,मेरी थोड़ी मदद कर दो।’

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